मेरी अर्जी न ठुकराना न और मुझे तरसाना
कभी आ भी जा घर मेरे मै कैसे रहुँ बिन ते रे
मेरा गरीब खाना तुमको बुला रहा है...
दो पल ही माँ आजाओ तुमको अग़र हो फुर्सा त
यह भगत तेरी रहा में पलकें बिछा रहा है
मेरा गरीब खाना तुमको बुला रहा है ....
माँ हो के बच्चों से तुम यूँ दूर कैसे हो गयी
दुनिया की तुम हो माल्लिक मजबूर कैसे हो गयी
अनमोल नेम्तों से सबको ही भर दिया
हम बदनसीबों से माँ मुंह फेर क्यों लिया है . ..
मायूस ज़िंदगी है सर पे माँ हाथ रख दै
देखो यह लाल तेरा आंसू भा रहा है
मेरा गरीब खाना तुमको बुला रहा है ....
पत्थरों मै रह कर दिल क्यों पत्थर सा कर लिया है
हम बदनसीबौ से मुँह फैर क्यों लिया है
रस्ते मैं आना, रूक न..कही देर हो न जाए
तेरी देर से भवानी अंधेर हो न जाए
दुनिया की बेरूखी का क्योंकर गिल्ला करें
अपना नसीब जब माँ नजरें चुरा रहा है
मेरा गरीब खाना तुमको बुला रहा है ....
ये वक्त बैवफा है जिसने न साथ छौढा
अब तुम को क्या कंहु मै तुम ने भी हाथ छौढा
ममता की तुम हो दैवी कुछ तो ख्याल करती
मेरा कोई तो मैय्या पुरा सवाल करती
तुम रहमती हो सबका कैसे यह मान लूं मै
तैरे होते जब ये मुझपे बढे जुर्म ड़ा रहा है
मेरा गरीब खाना तुमको बुला रहा है ....
मेरी अर्जी न ठुकराना न और मुझे तरसाना
कभी आ भी जा घर मेरे मै कैसे रहुँ बिन तेरे
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