Sunday, September 12, 2010

तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही मेरा होर कोई वि ठिकाना नही









तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही

मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही ...मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

जिन्नू मिल गया माँ तेरा इशारा

हे उसी दी कश्ती उसेदा किनारा

मिल जाये मेनू वि तेरा सहारा

मन्गदा मैं तैथौः खजाना नही मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही ...मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

जिन्नू चढ गयी तेरे नाँ दी खुमारी

झुकी औन्दे कदमाँ-च एह दुनीया सारी

मेंवि तेरे दर दा हाँ अदना भिखारी

चरणाँ चौ मेनू वि हटाणा नही मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही ...मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

तेरे दर दी धुढी मैं मस्तक ते लालाँ

सुरमा समझ के मै अखाँ विच पालाँ

मै दुख सारे भेंटा दे अन्दर सुणालाँ

ऐ तरला है चंचल दा गाणाँ नही मेरा होर कोई वि ठिकाना नही

तेरा द्वार छड् के मैं जाणा नही ...मेरा होर कोई वि ठिकाना नही











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